मार्ग और देशी संगीत क्या है ? 2023

नमस्कार दोस्तों, इस पोस्ट में आप लोग यह जान पाएंगे कि मार्ग और देशी संगीत क्या है ? यह का महत्वपूर्ण टॉपिक है जो कि लगभग सभी संगीत संबंधी परीक्षाओं जैसे UGC NET, UPTET ( Music ), REET, CTET, MPTET ( वर्ग 2 व 3 संगीत शिक्षक ), KVS ( Music), Music यूनिवर्सिटी एग्जाम्स में कई बार पूछा जा चुका है। आइए जानते हैं मार्गी एवं देसी संगीत क्या है ? इसकी विशेषताएं।
मार्ग और देशी संगीत ( Marg aur Deshi Sangeet) :-
प्राचीन काल में संगीतज्ञ ने संगीत को दो भागों में विभाजित किया था।
1) गांधर्व संगीत
2) गान
संगीत रत्नाकर के टीकाकार कल्लिनाथ के अनुसार गान्धर्व को मार्ग संगीत और गान को देशी संगीत माना जा सकता है।
गांधर्व या मार्ग संगीत क्या है ?
प्राचीन समय में जब ऋषियों ने यह देखा कि संगीत में मन को एकाग्र चित्त करने की एक अद्भुत प्रभावशाली शक्ति है तब एक कला से ईश्वर की आराधना करने लगे, और संगीत परमेश्वर प्राप्ति का प्रमुख साधन माना जाने लगा। प्राचीन काल में जिस संगीत को मोक्ष प्राप्त करने का साधन माना जाता था उसे ‘मार्गी संगीत’ या ‘गांधर्व संगीत‘ कहते हैं।
मार्ग संगीत की रचना स्वयं ब्रह्मा जी ने की थी तथा इसे ईश्वर निर्मित माना जाता है , कहा जाता है कि ब्रह्मा जी नें इसे भरतमुनि को सिखाया भरत मुनि ने इसका प्रदर्शन गंधर्व और अपसराओं के द्वारा भगवान शंकर के समक्ष करवाया, इस संगीत को केवल गांधर्व ही गाते थे इसलिए इस संगीत को गांधर्व संगीत कहकर पुकारा जाता है। मार्गी संगीत अचल संगीत माना जाता है; क्योंकि इसमें थोड़ा सा भी परिवर्तन नहीं किया जा सकता था इसके नियम और बंधन अत्यंत कठोर थे और इन नियमों का पालन करते हुए परमेश्वर की प्राप्ति की एक मात्र उद्देश्य था, लोकरंजन से इसका कोई संबंध नहीं था।
मार्ग संगीत शब्द प्रधान होता था, इसको आध्यात्मिक उत्सवों के समय ही गाया बजाया जाता था। यदि वर्तमान समय की बात करें तो मार्गी संगीत का अब कोई स्वरूप प्राप्त नहीं होता है।
देशी संगीत या गान क्या है?
प्राचीन काल में जब हमारे पूर्वजों ने यह अनुभव किया कि परमेश्वर प्राप्ति के अतिरिक्त संगीत में मनोरंजन का भी गुण है, तभी से मार्गी संगीत के अतिरिक्त संगीत का दूसरा रूप प्रचार में आया, अब संगीत दो भागों में विभाजित हो गया था पहला वो था जिसका देश ईश्वर की प्राप्ति था तथा दूसरा जिसका इसका उद्देश्य लोक मनोरंजन था, विद्वानों का ऐसा मानना है की मार्गी संगीत में परिवर्तन करके देशी संगीत की उत्पत्ति हुई। जनरुचि के कारण जिस संगीत का आविष्कार एवं प्रचार-प्रसार लोगों के मनोरंजन हेतु हुआ उसे ‘देशी संगीत‘ कहते हैं।
देशी संगीत का उद्देश्य मनोरंजन था इसलिए लोगों की रूचि के अनुसार उसमें अनेक परिवर्तन आने लगे, भिन्न भिन्न प्रांतों के देशकाल वातावरण के अनुसार संगीत में अंतर आने लगा।
प्राचीन समय में देसी संगीत को ‘गान’ कहकर पुकारा जाता था। आधुनिक समय में हम जो संगीत सुन रहे हैं उसे देशी संगीत कहा जाता है। इस संगीत की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें समय-समय पर अनेक परिवर्तन होते रहे हैं, जनरुचि पर आधारित होने के कारण प्रत्येक प्रांत में इसका अलग स्वरूप देखने को मिलता है। इस संगीत के नियम मार्गी संगीत की तरह कड़े नहीं है और इसमे स्वतंत्रता भी अधिक है।
संपूर्ण भारत में आज के समय में देसी संगीत ही प्रचार प्रसार है। वर्तमान समय में इसकी दो पद्धतियां प्रचलित हैं –
1) उत्तर भारत संगीत पद्धति या हिंदुस्तानी संगीत
2) दक्षिण भारत संगीत पद्धति या कर्नाटक संगीत
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मार्ग और देशी संगीत में अंतर
- मार्गी संगीत का निर्माण ईश्वर द्वारा किया गया और इसका एकमात्र उद्देश्य परमेश्वर की प्राप्ति था, जबकि देशी संगीत मानव द्वारा निर्मित है और इसका उद्देश्य मनोरंजन था ।
- मार्गी संगीत अचल है इसमें किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं किया जा सकता जबकि देशी संगीत परिवर्तनशील है, उसमें देशकाल वातावरण अनुसार परिवर्तन किया जा सकता है।
- मार्गी संगीत अनेक कठोर नियमों से बंधा हुआ है जिसमें गायक वादक को बिल्कुल भी स्वतंत्रता नहीं है, जबकि देशी संगीत में नियम बहुत ज्यादा कठिन नहीं है लोक रुचि के द्वारा इनमें समय-समय पर परिवर्तन किया जाता रहा है, इसमें गायक तथा वादको को अधिक स्वतंत्रता प्राप्त है।
- मार्गी संगीत शब्द प्रधान होता है जबकि देशी संगीत स्वर प्रधान है।
- मार्गी वर्तमान समय में प्रचलित नहीं है, जबकि देशी संगीत की पूरे भारत में दो पद्धतियां प्रचलित हैं जो कि उत्तर भारत संगीत पद्धति और दक्षिण भारत संगीत पद्धति है।

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