स्वामी हरिदास का जीवन परिचय [ 2024 ]

नमस्कार मित्रों, इस post के द्वारा आप सभी संगीत प्रेमी बन्धु भगिनी; स्वामी हरिदास जी के जीवन के विषय में जान पायेंगे, स्वामी हरिदास जी का जीवन परिचय संगीत संबंधी परीक्षाओं जैसे यूजीसी नेट ( संगीत ), MPTET वर्ग 2 वर्ग 3 ( गायन – वादन ), CTET Music, KVS Music, JNV Music, UPTET इत्यादि की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
स्वामी हरिदास जी का जीवन परिचय –
स्वामी हरिदास जी का जन्म भक्त चरितामृत के अनुसार विक्रम संवत 1538 के भाद्रपद मास में ( सन् 1480 ई. ) जन्माष्टमी को हुआ ऐसा माना जाता है जोकि एक सारस्वत ब्राह्मण थे। इनके पिता आशुधीर तथा माता गंगादेवी बड़े ही धार्मिक और साधु संतो के भक्त थे।
स्वामी हरिदास में बचपन से ही ईश्वर के प्रति भक्ति भावना जागृत हुई। इन्होंने मात्र 25 वर्ष की आयु में ही सन्यास लेकर वृंदावन चले गए और ‘निधिवन निकुंज’ में एक छोटी से कुटिया बनाकर रहने लगे। इन्होंने बहुत ही साधारण जीवन जिया, जीवन की कम से कम आवश्यकताओं की पूर्ति इन्हें अधिकतम सुकून देती थी। कुछ संगीत ग्रंथों में स्वामी हरिदास को ‘नादब्रह्म योगी‘ कहा है; कहते है की स्वामी जी ने नाद के द्वारा ब्रह्म का साक्षात्कार किया।
स्वामी हरिदास के जीवन के विषय में बहुत ही कम जानकारी प्राप्त होती है, इसका मुख्य कारण यह है की उन दिनों ऐसा कोई साहित्यकार या संगीतज्ञ भी तो जो किसी के भी विषय में लिख पाता। इसी कारण स्वामी जी की जन्मतिथि और जन्मस्थान के संबंध में बहुत से विद्वानों के अलग अलग मत प्रस्तुत किए है।
स्वामी जी के जीवन के विषय में यह मत भी प्रचलित है की उनका जन्म पंजाब के मुलतान या होशियारपुर या हरियाणा के किसी गांव में हुआ था। कुछ लोगों के विचार से उनके पूर्वज पंजाब के थे, किन्तु उनका जन्म उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ जिले के खेरेश्वर महादेव के समीप हुआ था और इनके नाम से ही वहा हरिदासपुर नामक गांव बस गया।
स्वामी हरिदास और मुगल बादशाह अकबर
स्वामी हरिदास अपनी कुटिया छोड़कर कही नहीं जाते थे। बादशाह अकबर, मिया तानसेन से प्रतिदिन स्वामी हरिदास की प्रशंसा सुना करता था, इसी कारण अकबर के मन में हरिदास जी का गायन सुनने की प्रबल इच्छा जागृत हुई।वे तानसेन के साथ वृंदावन गए और स्वामी जी की कुटिया के निकट एक झाड़ी में छिपकर बैठ गए। स्वामी जी को गायन के लिए तानसेन एक ध्रुपद जानबूझ कर अशुद्ध गाने लगे, स्वामी जी ने आश्चर्य में आकर तानसेन को डांटा और उसका शुद्ध गायन तानसेन को सुनाया, तब बाहर झाड़ी में छिपे अकबर बादशाह आत्मविभोर हो गए।
गायन सुनाने के बाद जब स्वामी जी को यह ज्ञात हुआ की अकबर को उनका गायन सुनाने के लिए ही तानसेन ने यह उक्ति निकली थी तो उन्होंने कहा कि तुमने छल से मेरा गायन अकबर को सुनवाया है, यह बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं है खैर जाओ अब बादशाह को अंदर बुला लाओ कहते है की अकबर उनके गायन से इतना भाव विभोर हो गया था की उसने स्वामी जी के चरण पकड़ लिए और अपना एक बहुमूल्य हार उनके चरणों में रख दिया लेकिन स्वामी जी ने आभार प्रदर्शित करते हुए वह हार वापस लौटा दिया।
स्वामी हरिदास जी की मृत्यु
स्वामी हरिदास जी की मृत्यु संवत 1664 में हुई ऐसा माना जाता है। वृंदावन में भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को प्रतिवर्ष हरिदास जयंती मनाई जाती है।
स्वामी हरिदास के शिष्य
स्वामी हरिदास जी के मुख्य शिष्य तानसेन, बैजूर बावरा, रामदास दिवाकर तथा राजा सौरसेन थे।
स्वामी हरिदास जी गायन के अतिरिक्त वादन और नृत्य में भी परांगत थे। उत्तर भारत में जो कुछ भी संगीत मिलता है वह स्वामी हरिदास जी की ही देन है।
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आशा करता हूं की मेरे द्वारा दी गई जानकारी आपके लिए उपयोगी सिद्ध हुई हो, यदि आपको यह जानकारी रोचक लगी तो इसे अपनें संगीत संबंधी मित्रों के साथ शेयर करें।
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